Ahoi Ashtami Vrat Katha 2024: अहोई अष्टमी के दिन पूजा के साथ जरूर पढ़ें ये व्रत कथा

इस वर्ष यह व्रत 24 अक्टूबर को रखा जा रहा है। इस व्रत में महिलाएं अहोई माता की पूजा करती हैं और अपनी संतान की सुख-समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। शाम के समय तारों के नीचे कथा सुनने के बाद, तारों को अर्घ्य देकर वे अपना व्रत खोलती हैं।
इस साल यह व्रत 24 अक्टूबर को रखा जा रहा है। इस व्रत में अहोई माता की पूजा की जाती है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान के लिए निर्जला व्रत करती हैं। शाम को तारों की छांव में कथा सुनकर तारों को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। कई जगह तारे निकलने के बाद अहोई माता की पूजा शुरू होती है। पूजन से पहले पूजा वाली जगह को साफ करके, पूजा का चौक पूरकर, एक लोटे में जल भरकर उसे कलश की तरह चौकी के एक कोने पर रखते हैं और फिर पूजा करते हैं। इसके बाद अहोई अष्टमी व्रत की कथा सुनी जाती है। कथा पढ़ने के बाद आखिर में प्रार्थना करनी चाहिए कि जैसे माता ने उसकी संतान की रक्षा की वैसे सभी की रक्षा करें
Katha-प्राचीन काल में एक साहूकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। इस साहूकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ चली गई। दीपावली से पहले कार्तिक बदी अष्टमी को सातों बहुएं अपनी इकलौती नंद के साथ जंगल में मिट्टी लेने गई। जहां से वे मिट्टी खोद रही थी। वही पर स्याऊ–सेहे की मांद थी। मिट्टी खोदते समय ननद के हाथ से सेही का बच्चा मर गया। इससे क्रोध में आकर स्याऊ माता ने ननद से कहा कि अब मैं तेरी कोख बांधूगी। तब ननंद अपनी सातों भाभियों से प्रार्थना की, कि तुम में से कोई मेरे बदले अपनी कोख बंधवा ले। सभी भाभियों ने अपनी कोख बंधवाने से मान कर दिया, लेकिन छोटी भाभी सोचने लगी, अगर मैं कोख न बंधाऊगी तो सासू जी नाराज होंगीष ऐसा विचार कर ननंद के बदले छोटी भाभी ने अपने को बंधा ली। उसके बाद जब उसे जो बच्चा होता वह सात दिन बाद मर जाताष एक दिन साहूकार की स्त्री ने पंडित जी को बुलाकर पूछा की, क्या बात है मेरी इस बहु की संतान सातवें दिन क्यों मर जाती है। तब पंडित जी ने बहू से कहा कि तुम काली सुरही गाय की पूजा किया करो। उन्होंने बताया कि दरअसल काली गाय स्याऊ माता की भायली है, वह तेरी कोख छोड़े तो तेरा बच्चा जिएगा। छोटी बहू ने पूरी लगन से गाय की सेवा की। एक दिन गौ माता बोली कि मेरे जागने से पहले कोई रोज मेरी सफाई कर जाता है, सो आज देखूंगी। गौमाता खूब तड़के जागी तो क्या देखती हैं कि साहूकार की के बेटे की बहू उसके नीचे सफाई आदि कर रही है। इससे गौ माता प्रसन्न हुईं और बोला कि मैं तुझसे प्रसन्न हूं, तुझे जो चाहिए वो मांग ले। तब साहूकार की बहू बोली की स्याऊ माता तुम्हारी भायली है और उन्होंने मेरी कोख बांध रखी है, उनसे मेरी कोख को खुलवा दो।
साहूकारनी बोली कि मेरा तो एक भी बेटा नहीं, सात कहां से होंगेष स्याऊ माता बोली– वचन दिया वचन से फिरूं तो धोबी के कुंड पर कंकरी होऊं। तब साहूकार की बहू बोली माता बोली कि मेरी कोख तो तुम्हारे पास बन्द पड़ी हैं। जा, तेरे घर में तेरे घर में तुझे सात बेटे और सात बहुएं मिलेंगी। तू जा कर उजमान करना। सात अहोई बनाकर, सात कड़ाई करना। वह घर लौट कर आई तो देखा सात बेटे और सात बहुएं बैठी हैंष वह खुश हो गई। उसने सात अहोई बनाई, सात उजमान किये, सात कड़ाई क। दिवाली के दिन जेठानियां आपस में कहने लगी कि जल्दी जल्दी पूजा कर लो, कहीं छोटी बहू बच्चों को याद करके रोने न लगे।
काफी देर तक रोने की आवाज नहीं आई तो जेठानी ने बच्चों को भेजा। बच्चों ने देखा और वापस जाकर कहा कि चाची तो कुछ मांड रही है, खूब उजमान हो रहा है। यह सुनते ही जेठानियां दौड़ी-दौड़ी उसके घर गई और जाकर पूछने लगी कि तुमने कोख कैसे छुड़ाई? वह बोली तुमने तो कोख बंधाई नहीं! मैंने बंधा ली, अब स्याऊ माता ने कृपा करके मेरी को खोल दी हैं। स्याऊ माता ने जिस प्रकार उस साहूकार की बहू की कोख खोली, उसी प्रकार हमारी भी खोलियो, सबकी खोलियों. कहने वाले की तथा हुंकार भरने वाले तथा परिवार की कोख खोलिए।